पालघर के वाढवण में प्रस्तावित मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट बंदरगाह परियोजना को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद किसानों, मछुआरों, भूमिपुत्रों के विरोध की आग और भड़क गई है। विनाशकारी बंदरगाह परियोजना को रद्द न किए जाने को लेकर मछुआरों, आदिवासियों का रोष बढ़ता जा रहा है। इसके तहत आदिवासी और मछुआरे हर दिन नए-नए तरीकों से केंद्र, और राज्य सरकार के खिलाफ रोष व्यक्त कर रहे हैं।
इसी कड़ी के तहत शुक्रवार को तीन दिन से जारी अनशन के बाद वाढवण बंदरगाह विरोधी संघर्ष समिती,भूमि सेना और वाढ़वन बंदरगाह विरोधी युवा संघर्ष समिति सहित 20 संगठनों ने पालघर में केंद्र सरकार,राज्य सरकार और जेएनपीए के खिलाफ नारेबाजी की। और ट्रिपल इंजन सरकार और जेएनपीटी की अर्थी सजाकर पूरी रीति रिवाज के साथ उसे कंधे पर उठाकर अंतिम यात्रा निकाली। अंतिम यात्रा निकालने के बाद पुतला की अर्थी फूंकी गई। अंतिम यात्रा में मछुआरे आदिवासी और बुजुर्ग बड़ी संख्या में शामिल हुए। मछुआरों का कहना है, कि वाढवण बंदरगाह का विरोध राज्य के विकास या प्रगति का विरोध है, ये बिलकुल झूठ है। उन्होंने कहा कि विनाशकारी परियोजना जबरन हम पर थोपी जा रही है।
प्रदर्शकारी स्वप्निल तरे ने कहा कि मछुआरों और आदिवासियों ने अब प्रण कर लिया है, कि जान भी चली गई,तो भी विनाशकारी परियोजना की शुरुवात नही होने देंगे।
तीन दिनों से जारी अनशन का सरकार न ही अधिकारियों ने कोई संज्ञान नही लिया। इसके बाद सरकार का अंतिम संस्कार किया गया। और बंदरगाह का विरोध जताते हुए उसे रद्द करने की मांग की गई है।
नारायण पाटील,अध्यक्ष वाढ़वन बंदरगाह विरोधी संघर्ष समिति