छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे के जीवन वृतांत और संघर्ष पर आधारित फिल्म छावा इन दिनों सिनेमा घरों में धूम मचा रही ह देश भर में तो इस फिल्म को बेहद पसंद किया जा ही रहा है, विशेष रूप से मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ और महाराष्ट्र में लोग छावा के दीवाने हो गए है। छत्रपति संभाजी महराज की विजय गाथा को फिल्म छावा में ऐसे दिखाया गया है कि देखने वालों के रोंगटे खड़े हो रहे हैं। दरअसल, इन दिनों छत्रपति संभाजी महाराज की याद में 40 दिवसीय बलिदान मास (बलिदान का महीना) शुरू है। बलिदान मास 29 मार्च को धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि तक चलेगा।
मराठा महा संघ के पालघर जिला उपाध्यक्ष आनंद सावंत ने बताया कि धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज को लोग घर-घर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके त्याग और समर्पण को याद कर रहे है। और उनके साहस और बलिदान को अपने बच्चों को सुना रहे है।जिससे धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की विजय गाथाओं की गूंज घर-घर में गूंज रही है।सावंत ने बताया कि बलिदान मास का उद्देश्य युवाओं को अपने गौरवशाली इतिहास से परिचय करा कर उनमें निराशा और नशे की लत को कम करना है। दुर्गसेवक सत्यवान संकपाल ने बताया कि गुरुवर्य संभाजीराव भिडे गुरुजी के संघटन श्री शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्थान के माध्यम से पुरे महाराष्ट्र राज्य में बलिदान मास का आयोजन किया जाता है। और उन्हीं की प्रेरणा से बोईसर में शिवकालीन युद्धकला प्रशिक्षण टीम के अध्यक्ष आप्पाजी चौधर और प्रशिक्षक कुमार ओमकार संकपाल और उनके सहयोगी बलिदान मास का आयोजन लोगों के बीच कई वर्षों से करते आ रहे है। ताकि, शिवशंभू प्रतिष्ठान,और शिवशंभू और उनके वीरों के विचार जनमानस तक पहुंचते रहे।
धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की याद में लोगों ने सुख सुविधाओं को त्यागा,नहीं मनाते कोई उत्सव
धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज, शिवाजी महाराज के बेटे थे और वे एक महान योद्धा थे और उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने की बजाय शहीद होना बेहतर समझा था। संभाजी ने 12 लाख वर्गमील तक फैले मुगल शासन को खुली चुनौती दी थी। गद्दारी का शिकार बनने के बाद वे मुगलों के बंदी बने थे।
बलिदान मास का आयोजन संभाजी महाराज को औरंगजेब के हाथों उनकी निर्मम हत्या से पहले 40 दिनों तक दी गई यातनाओं की याद में किया जाता है। श्रद्धांजलि के तौर पर प्रतिभागी अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों, मिठाइयों और सुख-सुविधाओं से परहेज करते है। और इस दौरान लोग कोई उत्सव भी नहीं मनाते है।