बोईसर विधानसभा | विकास के नाम पर हर बार मिलता रहा झुनझुना, देखते है इस चुनाव मे क्या सपने दिखाते है उम्मीदवार ?

राजेन्द्र एम. छीपा

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राजेन्द्र एम. छीपा | हेडलाइंस 18 न्यूज़ नेटवर्क

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सर पर है हर एक दल सियासी शतरंज की बिसात पर शह और मात की बाजी खेलने के लिए तैयार है। सभी पार्टियों मे अंदर ही अंदर मंथन जारी है। अबकी बार विधानसभा चुनाव मे एक दो नहीं बल्कि पालघर जिले मे 8 राजनैतिक दल मैदान मे होंगे.

पालघर जिले की बोईसर विधानसभा एक ऐसी सीट है जहां अब तक कोई भी बड़ा दल सीट नहीं जीत सका है यहां अब तक हुए तीन चुनावों में बहुजन विकास अघाड़ी ने ही बाजी मारी है। बाकी यहां से भाजपा, शिवसेना को हार ही नसीब हुई है।

अब तक सिर्फ बहुजन विकास आघाडी जीती

2009 में विधानसभा चुनाव से पहले अस्तित्व में आई बोईसर विधानसभा क्षेत्र में कुल 243557 मतदाता हैं। 2009 मे पहली बार बहुजन विकास आघाड़ी के उम्मीदवार विलास सुकुर तरे इस सीट से जीते और विधायक बने। 2014 मे भी पुनः बहुजन विकास आघाड़ी के उम्मीदवार विलास सुकुर तरे विधायक बने,2019 मे बहुजन विकास आघाडी ने हेट्रिक मारते हुए यहां से राजेश रघुनाथ पाटिल चुनाव जीत गए.

क्या कहते है मतदाताओं के आंकड़े

बोईसर विधानसभा के कुल वोट का लगभग 46 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से आते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के अनुसार यहां कुल आदिवासी वोटर्स की संख्या करीब 1 लाख 32 हजार के आस पास है। जबकि 20 हजार के के करीब दलित वोटर्स और लगभग 7 हजार दलित मतदाता भी शामिल हैं। इस विधानसभा के करीब 58 फीसदी वोटर्स ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं।

दस साल के विधायक ने बदला पाला

2009 और 2014 विधानसभा चुनाव में बोईसर से विलास सुकुर तरे ने बहुजन विकास अघाड़ी के टिकट पर जीत दर्ज की, लेकिन 2019 चुनाव से ठीक पहले उन्होंने शिवसेना ज्वाइन करके शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन बहुजन विकास अघाड़ी के उम्मीदवार राजेश रघुनाथ पाटिल से करीब 2 हजार वोटों से हार गए। वर्तमान मे विलास तरे भाजपा मे है और बोईसर विधानसभा के चुनाव प्रमुख भी है.

बोईसर विधानसभा क्षेत्र की समस्याए

बोईसर विधानसभा क्षेत्र में तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ते जल और वायु प्रदूषण की बड़ी समस्या है.साथ ही औद्योगिक शहर बोईसर का धीमा विकास भी अहम मुद्दा है,ग्रामीण इलाकों में पानी और सड़कों की खराब हालत भी चुनाव मे गले की फांस बन सकती है तो दूसरी तरफ स्थानीय किसानों को कृषि के लिए सूर्या नदी से पानी नहीं मिलना भी मुद्दा बन सकता है.बड़ी आबादी वाला बोईसर नगरपालिका के लिए तरस रहा है तो यहां एक सरकारी अस्पताल भी बिल्डिंग की आस मे दम तोड़ रहा है वही मनोर शहर में बढ़ती यातायात की समस्या से लोग परेशान है तो उधर बोईसर- चिल्हार मार्ग की खस्ता हालत भी आए दिन लोगो की जान ले रहा है. चुनाव मे इन सभी समस्याओ का जवाब लेकर उम्मीदवारों को मैदान मे उतरना होगा.

अब तक विधायकों से नाखुश जनता

दस वर्ष विधायक रहे विलास तरे को 2019 के चुनाव मे निष्क्रिय होने के आरोप का सामना करना पड़ा था, शिवसेना-भाजपा गठबंधन होने के बावजूद भी इसी मुद्दे को लेकर भाजपा के संतोष जनाठे निर्दलीय चुनाव लड़े थे. वही वर्तमान विधायक राजेश पाटिल का लोगो के बीच जनसंपर्क तो ठीकठाक है पर उनके कामकाज को लेकर जनता संतुष्ट नहीं है.

आगामी चुनाव के लिए संभावित चेहरे

गली नुककड़ पर हो रही चर्चाओ से विधानसभा चुनाव को लेकर लोगो मे चर्चा है की भाजपा संतोष जनाठे या विलास तरे पर भरोसा जता सकती है तो वही शिवसेना शिंदे गुट से जगदीश धोड़ी के नाम पर चर्चाओ का बाजार गर्म है तो शिवसेना उद्धव गुट से डॉ. विश्वास वलवी उम्मीद लगाए बैठे है, ठीक उसी तरह ही बहुजन विकास आघाडी राजेश पाटिल पर ही दांव खेल सकती है या फिर कोई नया चेहरा मैदान मे उतारती है ये तो बाद मे ही पता चलेगा.

क्या कहते है समीकरण

वर्तमान मे सभी समीकरण बदल रहे है, बहुजन विकास आघाडी के लिए बोईसर के अपने गढ़ को बनाये रखना मुश्किल हो सकता है, अगर यह सीट भाजपा या शिवसेना जिसके भी खाते मे जाती है तो उस पार्टी को स्थानीय व मजबूत जनसंपर्क वाला उम्मीदवार मैदान मे उतारती है तो उसके लिए सीट निकालने की राह आसान है वरना चुनाव मे टकराव होने की स्थिति होंगी.

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